“भारतीय लोकसंगीत और मालिनी अवस्थी: चंदन किवाड़ के शब्दों में लोकधरोहर”
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में “चंदन किवाड़” का भव्य विमोचन
Voice of Pratapgarh News ✍️रिपोर्टर रविंद्र आर्य
जयपुर, चारबाग। लोकसंस्कृति किसी भी समाज की आत्मा होती है, जो उसकी पहचान, परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित रखती है। भारतीय लोककला और संगीत के इस सुगंधित संसार में मालिनी अवस्थी का नाम एक अमिट पहचान बन चुका है। उनकी सुरीली आवाज़ और गेय शैली ने भारतीय लोकसंगीत को नए आयाम दिए हैं। इसी लोकगंध को समेटते हुए, मेरी पहली पुस्तक “चंदन किवाड़” पाठकों के समक्ष आई है, जो भारतीय लोकसंस्कृति की गहराइयों को छूने का एक प्रयास है।
“चंदन किवाड़”: एक साहित्यिक समर्पण
“चंदन किवाड़” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति की जड़ों को स्पर्श करने और समझने का एक सेतु है। इस पुस्तक में लोकगीतों, परंपराओं, रीति-रिवाजों और भारतीय लोकसंगीत की अनमोल धरोहर को शब्दों में उकेरने की कोशिश की गई है। लोककला और साहित्य के इस संगम से पाठकों को एक अनूठा अनुभव मिलेगा, जिससे वे अपनी जड़ों से और अधिक गहराई से जुड़ सकेंगे।
लोकसंगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का अभिन्न अंग भी है। “चंदन किवाड़” के पन्नों में लोकसंगीत की उसी आत्मा को तलाशने का प्रयास किया गया है, जो हमें अपनी परंपराओं और विरासत से जोड़े रखती है।
मालिनी अवस्थी: लोकसंगीत की अमिट पहचान
मालिनी अवस्थी भारतीय लोकसंगीत की उन दुर्लभ आवाज़ों में से एक हैं, जिन्होंने पारंपरिक संगीत को न केवल जीवंत रखा, बल्कि उसे विश्वपटल पर भी स्थापित किया। उनका गायन केवल एक कला नहीं, बल्कि लोकसंस्कृति के प्रति एक निष्ठापूर्ण समर्पण है।
भोजपुरी, अवधी, ब्रज और बुंदेली लोकगीतों को उनके स्वरों ने जो पहचान दी है, वह अतुलनीय है। उनकी गायकी लोकजीवन के हर रंग को सजीव रूप में प्रस्तुत करती है—चाहे वह विरह के स्वर हों, होली की मस्ती हो, सावन के कजरी गीत हों या चैती की कोमल धुनें। उनकी आवाज़ में भारतीयता की गहरी जड़ें महसूस की जा सकती हैं।
लोकसंस्कृति का पुनर्जागरण
आज के आधुनिक युग में, जब पश्चिमी प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है, लोकसंस्कृति और लोकसंगीत का संरक्षण पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। मालिनी अवस्थी जैसी कलाकार और लोकसंस्कृति पर लिखी जाने वाली पुस्तकें, जैसे “चंदन किवाड़”, इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। यह पुस्तक न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मूल्यवान धरोहर साबित होगी।
27 कहानियाँ जो गीत बनकर नहीं गूंज सकीं
“चंदन किवाड़” की सबसे खास बात यह है कि इसमें उन कहानियों को शामिल किया गया है, जो अब तक केवल गीतों में सुनाई देती थीं, लेकिन कभी लिखित रूप में संरक्षित नहीं की गईं। यह पुस्तक 27 ऐसी कहानियों का संकलन है, जिनका मूल भारतीय लोकजीवन में निहित है और जो सदियों से केवल लोकगायकों के स्वरों में जीवंत थीं। इस संकलन के माध्यम से इन कहानियों को एक स्थायी रूप देने का प्रयास किया गया है।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में “चंदन किवाड़” का भव्य विमोचन
2 फरवरी 2025 को वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा जयपुर के क्लार्क्स आमेर होटल में आयोजित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में “चंदन किवाड़” का भव्य विमोचन किया गया। इस विशेष अवसर पर साहित्य, कला और संगीत प्रेमियों की एक बड़ी संख्या उपस्थित रही।
इस विमोचन सत्र में सुप्रसिद्ध लोकगायिका और अभिनेत्री इला अरुण, लेखक यतींद्र मिश्र और वाणी प्रकाशन समूह की अदिति माहेश्वरी गोयल ने पुस्तक पर विस्तार से चर्चा की। चर्चा का केंद्र बिंदु लोककला, मालिनी अवस्थी की संगीत यात्रा और भारतीय लोकसंस्कृति के संरक्षण का महत्व रहा।
उम्मीदों का किवाड़
“चंदन किवाड़” केवल एक साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि उन सभी लोकप्रेमियों के लिए एक आमंत्रण है, जो अपनी जड़ों की सुगंध को महसूस करना चाहते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से मैंने लोककथाओं, लोकगीतों और उनकी ऐतिहासिक प्रासंगिकता को सहेजने का प्रयास किया है।
मालिनी अवस्थी जैसी कलाकारों की प्रेरणा से यह पुस्तक अपने उद्देश्य में सफल होगी, यही मेरी आशा है।
अंतिम विचार
लोकसंस्कृति हमारी पहचान का अभिन्न अंग है। इसे जीवंत बनाए रखना हमारा कर्तव्य भी है और जिम्मेदारी भी। “चंदन किवाड़” केवल लोकगीतों और लोककथाओं का संकलन नहीं, बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति के संरक्षण का एक विनम्र प्रयास है।
“लोकसंस्कृति की यह यात्रा निरंतर जारी रहे और हमारी लोकधरोहर आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे—यही मेरी कामना है।”
