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प्रतापगढ़। अरनोद भारत एक धर्म प्रधान देश है, यहा के जनमानस मे धार्मिक संस्कार बहुत ही पवित्र भावना के साथ भरा हुआ है। सर्व धर्म समभाव यहा की संस्कृति है, यहा अनेक धर्मावलंबी सदियों से साथ रहते आये है। महावीर स्वामी की जन्म जयंती पर
अरनोद कस्बे के रहवासी राजमल मारवाड़ी ने बताया कि
जैन धर्म एक अनादि धर्म है इससे 24 तीर्थंकर हुए है प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ने इसे पुनरुद्धार किया| पुराण कहते है कि जब कल्पवृक्षो का विलोप हुआ तो जनमानस का जीवित-रहना मुश्किल हो गया तब आदीनाथ ने उन्हे असि, मसी, कृषि, वाणीज्य विद्या एवं शिल्प का ज्ञान दिया ओर जीने की नई राह दिखाई, यह शिक्षा मानव मात्र के लिए थी, किसी धर्म अथवा जाति विशेष के लिए नही थी।
हमारी भारतीय- संस्कृति- सभ्यता हज़ारो वर्ष पुरानी है बहुत ही गौरवमयी है, जब भी इस पर आघात हुआ तो कोई युग-पुरुष अवतार या तीर्थंकर या महात्मा के रूप मे हमारे बीच आया और इसे पुनः जाग्रत किया इसमे मुख्य रूप से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम, नारायण, श्री कृष्ण, तीर्थंकर महावीर एवं महात्मा बुद्ध| इन सभी ने अपने-अपने समय मे जन- मानस को अपने दर्शन-उपदेश एवं आचरण से एक नई राह दिखाई इन चारो महापुरुषो के जीवन मे एक समानता थी, भगवान राम ने दिन के 12 बजे जन्म लिया तो नारायण श्री कृष्ण ने रात्रि 12 बजे, महावीर समस्त वैभव व एशवर्य को छोड़कर दिन के 12 बजे वन की और चल दिये तो महात्मा बुद्ध रात्रि 12 बजे अकेले निकल पड़े, यह एक विचित्र संयोग था। आज अगर इन चारो महान-विभूतियो को भारतीय संस्कृति एवं धर्म से अलग कर दिया जाए तो हमे हमारा पोराणिक इतिहास, सभ्यता, संस्कृति बिलकुल ही शून्य नज़र आएगी, खोकलापन लगेगा| इन्होने जो रास्ता हमे दिखाया वह हमारे-गौरव एवं संस्कृति के विकास मे मिल का पत्थर हो गया।
आज महावीर जयंती है, भगवान महावीर का जन्म भारत के वैशाली गणराज्य के कुंडलपूर् ग्राम मे हुआ था उनके पिता राजा सिद्धार्थ एवं माता त्रिशला देवी थे, कहते है तत्कालीन वैशाली गणराज्य भारत का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राज्य था वहा की शासन व्यवस्था 700 जनप्रतिनिधि राजा के नेत्रत्व मे शासन चलाते थे| महलो मे सारी सुख-सुविधा राजसी एशवर्य एवं वैभव था पर महावीर इन सब से विमुक्त रहते थे, अवसर देखकर एक दिन सार राजपाठ परिवार छोड़कर वन की ओर साधना मै लीन हो गए।
भगवान महावीर की समवशरण
सभा मे देव मनुष्य, पशु-पक्षी सहित समस्त प्राणियों के लिए स्थान था उनकी वाणी सर्वकल्याणी थी, उनके आभा मंडल का प्रभाव से मनुष्य तो क्या परस्पर विरोधी सिह ओर गाय भी एक घाट पर पानी पीने लगे। महावीर का जियो और जीने दो का उपदेश इस बात का प्रमाण है की जिस प्रकार तुम जीना चाहते हो उसी प्रकार सभी जीना चाहते है अगर तुम किसी को जीवन दे नही सकते तो तुम्हे उसका जीवन लेने का अधिकार नही है। धर्म के सच्चा स्वरूप और उसकी प्राप्ति मे मूल कारण हृदय की पवित्रता को माना, संसार मे समस्त विवादो को शांत करने के लिए स्वादाद-अनेकांत का अनमोल सिद्धांत दिया एवं समस्त विश्व को करुणा भाव से देखा। उनका सारा उपदेश अहिंसा एवं मानववाद पर आधारित था, उसके लिए वे सिद्धांत प्रतिपादित किये जो हमारी मुक्ति रूपी यात्रा के सहचर है इनमे अहिंसा, सत्य, अचोर्य, ब्रहमचर्य एवं अपरिग्रह आदि पंचशील प्रमुख है, इन का आचरण हमारे अंधकारमय जीवन को प्रकाश की ओर लेकर सुखी बना सकता हैं। आज के इस आपाधापी के युग मै महावीर के उपदेशों की बड़ी प्रासंगिकता है| मानवीय उच्च आदर्शो की बात करना बहुत सरल है जिसे विश्व के कई चिंतको ने प्रस्तुत किया है पर मानवीय संवेदनाओ का साकार रूप एवं श्रेष्ठ आधार महावीर के पंचशील सिद्धांत ही है। वसुदेव कुटुंबकम का सूत्र अपनाए बिना मानवता की कल्पना संभव नही है।
स्वतंत्रता एवं समानता के चिंतन का जो स्तर महावीर ने प्रस्तुत किया है वह सर्वोदयि मानववाद के रूप मै जान जाता है उसकी तुलना भौतिकवाद से नही की जा सकती है क्योकि वह तो बहुत ही तुच्च है- स्वार्थपूर्ण है| मानव का उत्थान रोटी, कपड़ा, मकान, से नही हो सकता, अपितु संतोष और त्याग ही मानव के सर्वोदयि स्वप्न को साकार कर सकता है। महावीर ने कर्म को जीवन निर्धारण का आधार माना है वर्तमान मै जीने वाला अगर सदकर्म का सृजन करता है वही व्यक्ति अपने जीवन को महान बना सकता है|
इन सभी विषमताओ का एक ही समाधान है, भगवान महावीर का शुभ संदेश जियो ओर जीने दो।
त्योहार हमारे जीवन मे उत्साह उमंग व उल्लास एवं कुछ नयापन लाते हैं महावीर जयंती पर समस्त जैनि भाई मंदिरो मे भगवान महावीर का अभिषेक , पूजन करते है शोभायात्रा निकाली जाती है फिर सब सामूहिक भोज भी करते है इससे समाज मे एकता भाईचारा बढ़ता हैं।
