बढ़ता खतरा: स्टेशनरी दुकानों पर आसानी से उपलब्ध खतरनाक केमिकल
Voice of Pratapgarh News ✍️रिपोर्टर रविंद्र आर्य
शिक्षा और ज्ञान का केंद्र माने जाने वाले विद्यालयों, पुस्तकालयों और स्टेशनरी दुकानों पर अब नशे के अवैध कारोबार ने अपनी जगह बना ली है। जहाँ बच्चों को किताबें और स्टेशनरी सामग्री मिलनी चाहिए, वहाँ अब उन्हें ऐसे घातक रसायन आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं।
दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के कई शहरों में किशोरों और स्कूली बच्चों के बीच ओमनी केमिकल, फिलुड, पंचर जोड़ने वाले सॉल्यूशन और अन्य वाष्पशील पदार्थों का नशे के रूप में उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में गाजियाबाद के कालका गढ़ी क्षेत्र में पुलिस ने ओम साईं स्टेशनरी दुकान पर छापा मारकर इस अवैध कारोबार का पर्दाफाश किया, जिससे यह खुलासा हुआ कि नशे के ये घातक पदार्थ दुकानों पर खुलेआम बेचे जा रहे हैं।
बच्चों को बर्बाद कर रहा सूखा नशा
यह स्थिति बेहद चिंताजनक है क्योंकि यह नशा बच्चों के मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र और सामाजिक व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। विशेष रूप से 10 से 18 वर्ष की आयु के किशोर इस खतरनाक प्रवृत्ति का शिकार हो रहे हैं। कई अभिभावकों और स्कूल प्रशासन को यह तक पता नहीं कि बच्चे किन उत्पादों को नशे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, सूखे नशे के ये उत्पाद सीधे मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम पर प्रभाव डालते हैं, जिससे –
मस्तिष्क की कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं, जिससे बुद्धि और एकाग्रता प्रभावित होती है।
• फेफड़ों और हृदय पर गंभीर प्रभाव, जिससे साँस लेने में तकलीफ और हार्ट अटैक तक का खतरा।
• मानसिक विकार, चिड़चिड़ापन और आक्रामक प्रवृत्ति विकसित होने लगती है।
• अपराध की प्रवृत्ति बढ़ती है, क्योंकि नशे की लत लगने के बाद बच्चे चोरी, मारपीट और अन्य गलत गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं।
कैसे बढ़ रहा है यह खतरनाक चलन?
नशे का यह नया रूप बेहद आसानी से उपलब्ध है। स्टेशनरी, किराने की दुकानों और पंचर की दुकानों पर यह उत्पाद सामान्य रूप से बेचे जाते हैं और इन्हें कोई भी बिना किसी रोक-टोक के खरीद सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि किशोर और बच्चे इन उत्पादों को खरीदकर –
किसी सुनसान स्थान पर जाकर रुमाल कपडे आदि से इन्हें सूंघते हैं।
• गहरी सांसों के साथ इनका सेवन करने पर मस्तिष्क कुछ देर के लिए सुन्न हो जाता है।
• यह एक तेज नशे का अनुभव देता है, लेकिन यह धीरे-धीरे लत बन जाता है।
• बार-बार सेवन करने से मस्तिष्क और स्नायु तंत्र को स्थायी क्षति हो सकती है।
गाजियाबाद और दिल्ली एनसीआर रीजन में इस विषय पर शोध कर रहे समाजसेवी रविंद्र आर्य ने बताया कि यह सूखा नशा बच्चों को इतनी तेजी से जकड़ रहा है कि वे इसे स्कूल बैग में छुपाकर भी ले जा रहे हैं। यह लत उनमें आक्रामक व्यवहार, आत्मघाती प्रवृत्ति और गलत संगति में जाने की संभावना को बढ़ा रही है।
नशे के सामाजिक प्रभाव
सूखे नशे की बढ़ती लत का असर केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि समाज पर भी गहरा पड़ रहा है।
बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं – कई रिपोर्ट्स के अनुसार, नशे की लत के कारण बच्चे पढ़ाई में रुचि खो रहे हैं।
परिवार से दूरी बढ़ रही है – किशोर इस लत की वजह से घरवालों से कटने लगते हैं और असामान्य व्यवहार करने लगते हैं।
अपराध की दुनिया में कदम – नशे के आदी बच्चे अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए चोरी, झगड़े और गैंग कल्चर का हिस्सा बन सकते हैं।
भविष्य अंधकारमय हो रहा है – पढ़ाई और स्वास्थ्य खराब होने से ये बच्चे आगे चलकर बेरोजगारी और अपराध के दलदल में फँस सकते हैं।
कानूनी व्यवस्था और सरकार की भूमिका
नशे की इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए सरकार और प्रशासन को कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
कानूनी नियंत्रण और सख्त कार्रवाई – स्टेशनरी और पंचर की दुकानों पर इन खतरनाक रसायनों की बिक्री पर सख्त निगरानी रखी जानी चाहिए। पुलिस को छापेमारी और कड़ी सजा के प्रावधान करने होंगे।
शिक्षकों और अभिभावकों की भूमिका
माता-पिता और स्कूलों को चाहिए कि वे बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें।
यदि बच्चे में कोई असामान्य व्यवहार दिखे, तो तुरंत मनोवैज्ञानिक सलाह लें।
समाजसेवी संस्थाओं और जागरूकता अभियानों की जरूरत
सामाजिक संगठनों को नशा मुक्ति अभियान चलाने की जरूरत है।
स्कूलों में नशा विरोधी कार्यशालाएँ कराई जानी चाहिए।
बिक्री पर सख्त प्रतिबंध –
इन उत्पादों की खुलेआम बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाए।
इनका उपयोग केवल लाइसेंस प्राप्त दुकानों और विशेष कार्यों के लिए हो।
रिपोर्टिंग और समाधान की ओर कदम
“इस समय मैं गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में हूँ। आज मेरे संज्ञान में शिकायत के माध्यम से यह मामला आया कि गाजियाबाद में कई स्थानों पर स्टेशनरी दुकानों और छोटे-छोटे वेंडरों द्वारा बच्चों को नशे के लिए पंचर जोड़ने वाले सॉल्यूशन जैसे खतरनाक रसायन बेचे जा रहे हैं। यह एक बेहद गंभीर मामला है और इस पर तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता है।”
– रविंद्र आर्य, समाजसेवी कार्यकर्ता, गाजियाबाद
आप क्या कर सकते हैं?
यदि आपके आसपास कोई बच्चा इस नशे का शिकार हो रहा है, तो तुरंत परिवार या शिक्षकों को सूचित करें।
पुलिस को सूचित करें, यदि किसी दुकान पर यह खतरनाक उत्पाद बेचे जा रहे हैं।
बच्चों को शिक्षित करें, ताकि वे इस नशे के प्रभाव को समझें और इससे बच सकें।
आज जब शिक्षा और विकास की ओर दुनिया आगे बढ़ रही है, तब हमारे बच्चों को नशे के अंधकार में धकेलना एक भयावह सामाजिक संकट है। यदि अभी इस खतरे को नहीं रोका गया, तो आने वाली पीढ़ी का भविष्य बर्बाद हो सकता है। हमें किताबों की दुकानों और स्कूलों को ज्ञान का केंद्र बनाए रखना होगा, न कि नशे का अड्डा बनने देना। बच्चों को शिक्षा, संस्कार और सही दिशा देने के लिए समाज, प्रशासन और परिवारों को मिलकर इस खतरे के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी।
यह रिपोर्ट नशा मुक्ति अभियान से जुड़े समाजसेवी और लेखक रविंद्र आर्य द्वारा तैयार की गई है। यह एक सामाजिक मुद्दा है, जिस पर सरकार और समाज को गंभीरता से ध्यान देना होगा।
